बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 51)

कौर निगलकर गम्भीर होते हुए, मोटे गले से बिल्लेसुर ने कहा, "हाँ वह काम तो देखना ही है।"


"वही कह रही थी," कुछ आगे खिसककर सासजी ने कहा, "कुछ रुपये अभी दे दो, कुछ वाद को, ब्याह के दो-तीन रोज़ पहले दे देना।"

रुपये के नाम से बिल्लेसुर कुनमुनाये। 

लेकिन बिना रुपये दिये ब्याह न होगा, यह समझते हुए एक पख लगाकर ब्याह पक्का करने लगे।

 कहा, "अभी तो अम्मा, किसी पण्डित से विचरवाया भी नहीं गया, न बने, तो?"

"बच्चे की बात" पूरे विश्वास से सर उठाकर मन्नी की सास ने कहा, "उसमें जब कोई दोख नहीं है तब ब्याह बनेगा कैसे नहीं ? बच्चे, वह पूरी गऊ हैं। 

और उसका ब्याह? वह अब तक होने को रहता? रामखेलावन आये, परदेश से, उल्टे पाँव लौट जाना चाहते थे, हाथ जोड़ने लगे,––चाची, ब्याह करा दो, जितना रुपया कहो, देंगे। 

अच्छा भाई, लड़की की अम्मा को मनाकर कुण्डली लेकर बिचरवाने गये, फट से बन गया।

 लड़की की अम्मा को तीन सौ नगद दे रहे थे। पर सिस्टा की बात; लड़की की अम्मा ने कहा, मेरी बिटिया को परदेश ले जायँगे, फिर कभी इधर झाँकेंगे नहीं; बिमारी-अरामी बूँद भर पानी को तरसूँगी; रुपये लेकर मैं क्या करूँगी? बना-बनाया ब्याह उखड़ गया। 

फिर चुकन्दरपुर के जिमींदार रामनेवाज आये। उनसे भी ब्याह बन गया। 

फलदान चढ़ने का दिन आया तब लड़की की अम्मा को उनके गाँव के किसी पट्टीदार ने भड़काया कि रामनेवाज अपने बाप का है ही नहीं, बस ब्याह रुक गया। 

कितने ब्याह आये सब बन गये, लेकिन कोई न हो पाया।"

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